आज तू बंदूक से बारूद को फूँक दे
इस बदनसीब को थोड़ा तो सुकून दे
अमन के बुझे चिराग को आज तू
अपनी ही दोस्ती से रोशन कर दे..
तेरे झंडे का सफेद में ही हूँ
मेरे में भी तू हरा होके लहराता है
तेरा मेरा छोड़के आज हम मुल्को को मिलाते है
सरहद पार आज हम इन रंगों की होली खेलते है
मिल्के एक दूसरे को पिछले दिनो के
वो किस्से सुनाते है
मज़हबी लकीर के बनाए
वो हिस्से मिलाते है
तू एक बार इस पार आके तो देख
अरे तू दोस्ती का पत्थर उठा के तो फेक
तब तक फेक जब तक तेरी भूंक नही मिटती
फिर में देखता हूँ के नफ़रत की काँच कैसे नही टूटती..
[Via http://insidetheblackhole.wordpress.com]
No comments:
Post a Comment