Thursday, November 12, 2009

किताबों में लिखे शब्द दुनियां नहीं चलाते-व्यंग्य कविता (kitab,shabd aur duniya-vyangya kavita)

किताबों में लिखे शब्द

कभी दुनियां नहीं चलाते।

इंसानी आदतें चलती

अपने जज़्बातों के साथ

कभी रोना कभी हंसना

कभी उसमें बहना

कोई फरिश्ते आकर नहीं बताते।

ओ किताब हाथ में थमाकर

लोगों को बहलाने वालों!

शब्द दुनियां को सजाते हैं

पर खुद कुछ नहीं बनाते

कभी खुशी और कभी गम

कभी हंसी तो कभी गुस्सा आता

यह कोई करना नहीं सिखाता

मत फैलाओं अपनी किताबों में

लिखे शब्दों से जमाना सुधारने का वहम

किताबों की कीमत से मतलब हैं तुम्हें

उनके अर्थ जानते हो तुम भी कम

शब्द समर्थ हैं खुद

ढूंढ लेते हैं अपने पढ़ने वालों को

गूंगे, बहरे और लाचारा नहीं है

जो तुम उनका बोझा उठाकर

अपने फरिश्ते होने का अहसास जताते।।

————–

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर

http://rajlekh.blogspot.com

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